hul divas

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संथालों को आत्मसमर्पण जैसे किसी शब्द का ज्ञान नहीं था. जब तक उनका ड्रम बजता रहता था, वे लड़ते रहते थे. जब तक उनमें से एक भी शेष रहा, वह लड़ता रहा. ब्रिटिश सेना में एक भी ऐसा सैनिक नहीं था, जो इस साहसपूर्ण बलिदान पर शर्मिन्दा न हुआ हो.’’

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