Sacrifice of Mizoram Parents
मिजोरम के प्रवास में आज खुम्तुङ (Khumtung) गाँव में एक परिवार में गए। स्वागत परिचय हुआ। चाय-पान की तैयारी चल रही थी इतनें में दीवार के फोटो के तरफ मेरा ध्यान आकर्षित हुआ। वह सर्टिफिकेट नुमा कुछ मिजो भाषा में लिखा था। साथ में मिजो एवं हिंदी भाषा के जानकार मित्र रामथङा थे। उन्होंने तुरंत उस सर्टिफिकेट में से काव्यपंक्ति को भाषांतरित किया। उस का अर्थ था: “मेरा जीवन काल समाप्त होकर, जिस भूमि से आया फिर वापस लौटना पडे तो भी मैं समाप्त नहीं हूंगा अनंत काल तक, क्यों कि मैं ईश्वर का आशीष वहन करनेवाला हूँ।“
फिर जानकारी मिली कि जिनके घर मे बैठे थे उनका नाम के ललनेइत्लुअङा एवं उनकी पत्नी वानमोईई है। उनका 22 साल का सुपुत्र के ललफमकिमा देश की रक्षा करता हुआ जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में आतंकवादीयों के साथ वीरतापूर्ण संघर्ष किया 3 आतंकवादीयों को मारते हुए दि 29 अगस्त 2004 रविवार को शहीद हुए। दि 2 सितम्बर 2004 बृहस्पतिवार को पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनके गाँव में उपर लिखित पारंपरिक गीत को गाते हुए लोगों ने अश्रुपूर्ण विदाई दी।
शहीद ललफमकिमा के छोटे भाई के ललरमह्लुना को भी उसकी इच्छा के अनुसार सेना में भर्ती हुए। तब लोगों ने पूछा कि सेना में नौकरी करना खतरनाक होता है। तब वीर माता ने बताया कि मृत्यु सभी को आता है। देश के लिए शहीद होना गौरव की बात है। ऐसे वीर माता-पिता को शत शत शत नमन।
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